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महिषासुर: राक्षस या नायक? नवरात्रि की दो कहानियाँ

नवरात्रि का पारंपरिक रूप

हर साल नवरात्रि में घर-घर देवी दुर्गा की पूजा होती है। पंडाल सजते हैं, ढोल बजते हैं और दसवें दिन विजयादशमी पर रावण दहन किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवी ने राक्षस महिषासुर का वध कर के देवताओं और पृथ्वी को उसके आतंक से बचाया। यही वजह है कि नवरात्रि को “असुर पराजय” का उत्सव माना जाता है।


Mahishasur contested past क्या है

लेकिन हर कहानी का एक और पहलू भी होता है। कई दलित, बहुजन और आदिवासी समुदायों के लिए महिषासुर सिर्फ़ राक्षस नहीं, बल्कि अपने समाज का नायक है। वे कहते हैं कि वह अपने अधिकार और ज़मीन के लिए लड़ा। यही बहस Mahishasur contested past कहलाती है—यानी एक ही ऐतिहासिक घटना के दो बिल्कुल अलग नजरिए।


लोककथाओं का दूसरा चेहरा

झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हर साल “महिषासुर शहादत दिवस” मनाया जाता है। वहां के लोगों का मानना है कि महिषासुर आर्यों से पहले के मूल निवासी थे और उन्होंने बाहरी ताक़तों से अपनी भूमि बचाने के लिए युद्ध किया। उनके लिए महिषासुर एक योद्धा है जिसे बाद में “राक्षस” कहकर बदनाम किया गया।


आर्य और असुर की बहस

इतिहासकारों का मानना है कि “असुर” शब्द का प्रयोग उन जनजातियों के लिए किया गया जो वैदिक आर्यों के बाहर थे। जैसे-जैसे आर्य सभ्यता फैली, इन स्थानीय जनजातियों को पराजित दिखाने के लिए उनकी कहानियों में उन्हें राक्षस कहा गया। इस दृष्टिकोण से Mahishasur contested past केवल धार्मिक कथा नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक है।


आधुनिक राजनीति पर असर

आज जब पहचान की राजनीति तेज़ है, यह बहस और भी महत्वपूर्ण हो गई है।

  • कुछ लोग कहते हैं कि महिषासुर को नायक बताना परंपरा का अपमान है।
  • दूसरी ओर, वंचित समुदाय इसे अपने खोए हुए इतिहास को वापस पाने का तरीका मानते हैं।

विश्वविद्यालयों में सेमिनार, सोशल मीडिया पर चर्चा और कलाकारों द्वारा नाटक-किताबें—सब जगह यह मुद्दा बढ़ रहा है।


त्योहार और बदलती सोच

दिलचस्प बात यह है कि कई जगह नवरात्रि मनाने का तरीका भी बदल रहा है। कुछ समूह पारंपरिक दुर्गा पंडाल के साथ-साथ “महिषासुर स्मृति सभा” भी करते हैं। यहां वे लोकगीत गाते हैं, अपने पूर्वजों की बहादुरी के किस्से सुनाते हैं और इतिहास को नए नज़रिए से देखते हैं।


सीख और संदेश

  1. इतिहास बहु-आयामी है: एक ही घटना को अलग लोग अलग तरह से याद कर सकते हैं।
  2. पहचान की खोज: वंचित समाज के लिए महिषासुर अपनी जड़ों से जुड़ने का जरिया है।
  3. सहनशीलता की ज़रूरत: अलग राय रखने वालों को सम्मान देना ही असली लोकतंत्र है।

आज का भारत और हमारी जिम्मेदारी

हमारे लिए ज़रूरी है कि हम दोनों कहानियों को सुनें। देवी दुर्गा की शक्ति का सम्मान करते हुए उन लोगों की आवाज़ भी समझें जो महिषासुर को अपना नायक मानते हैं। यही भारत की असली खूबसूरती है—कई तरह की परंपराएँ, परस्पर सम्मान और खुली सोच।


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Varun Tanwar

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